कैबिनेट मिशन Cabinet Mission
कैबिनेट मिशन क्लीमेंट एटली मंत्रिमण्डल द्वारा
1946 ई. में भारत भेजा गया था। इसका उद्देश्य भारतीय नेताओं से मिलकर उन्हें इस बात
का विश्वास दिलाना था कि सरकार संवैधानिक मामले पर शीघ्र ही समझौता करने को उत्सुक
है। लेकिन ब्रिटिश सरकार और भारतीय राजनीतिक नेताओं के बीच निर्णायक चरण 24 मार्च,
1946 ई. में आया, जब मंत्रिमण्डल के तीन सदस्य लॉर्ड पेथिक लॉरेंस (भारत सचिव), सर
स्टैफ़र्ड क्रिप्स (अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ़ ट्रेड) और ए.वी. अलेक्ज़ेण्डर (नौसेना मंत्री)
भारत आए।[1] एटली की घोषणा ब्रिटेन में 26 जुलाई, 1945 ई. को क्लीमेंट एटली के नेतृत्व
में ब्रिटिश मंत्रिमण्डल ने सत्ता ग्रहण की। प्रधानमंत्री एटली ने 15 फ़रवरी, 1946
ई. को भारतीय संविधान सभा की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलन्त समस्याओं पर भारतीयों से
विचार-विमर्श के लिए 'कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की। इस समय एटली ने कहा
कि "ब्रिटिश सरकार भारत के पूर्ण स्वतन्त्रता के अधिकार को मान्यता प्रदान करती
है तथा यह उसका अधिकार है कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत रहे या नही।" इसी घोषणा
के दौरान एक वाद-विवाद में अपना विचार व्यक्त करते हुए एटली ने कहा कि "हम अल्पसंख्यकों
के अधिकारों के प्रति भली-भांति जागरुक हैं और चाहते हैं कि अल्पसंख्क बिना भय के रह
सकें, परन्तु हम यह भी नहीं सहन करेंगे कि अल्पसंख्यक लोग बहुतसंख्यक लोगों की उन्नति
में आड़े आयें।" कांग्रेस द्वारा विभाजन का विरोध एटली द्वारा भेजे गए इस मंत्रिमण्डल
से कांग्रेस की ओर से बातचीत अबुल कलाम आज़ाद ने की। इस काम में जवाहर लाल नेहरू और
वल्लभ भाई पटेल ने उनकी सहायता की। महात्मा गांधी से ये लोग सलाह लेते रहते थे। लेकिन
इस मूल प्रश्न पर बातचीत में गतिरोध पैदा हो गया कि भारत की एकता बनी रहेगी अथवा मुस्लिम
लीग की पाकिस्तान की माँग को पूरा करने के लिए देश का विभाजन होगा। कांग्रेस विभाजन
का विरोध कर रही थी और विभि़न्न प्रांतों को जितनी भी अधिक-से-अधिक आर्थिक, सांस्कृतिक
और क्षेत्रीय स्वायत्तता दे सकना संभव था, देने को तैयार थी। शिमला में आयोजित एक सम्मेलन
में कांग्रेस और लीग के मतभेद दूर नहीं हो सके।[1] इन्हें भी देखें: शिमला सम्मेलन
मिशन की सिफारिशें 16 मई, 1946 ई. को इस मिशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट
में कैबिनेट मिशन ने निम्नलिखित सिफारिशें की थीं- एक भारतीय संघ स्थापित होगा, जिसमें
देशी राज्य व ब्रिटिश भारत के प्रान्त सम्मिलित होंगे। यह संघ वैदेशिक, रक्षा तथा यातायात
विभागों की व्यवस्था करेगा। संघ में देशी राज्यों व ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों की
एक कार्यपालिका होगी। किसी साम्प्रदायिक समस्या पर निर्णय करने के पूर्व यह आवश्यक
होगा कि विधानमण्डल में दोनों मुख्य सम्प्रदायों के प्रतिनिधि अलग-अलग मत से उसका समर्थन
करें। संघ सूची के अतिरिक्त अन्य सभी विषयों एवं अवशिष्ट विषयों पर प्रान्तों का अधिकार
होगा। भारतीय प्रान्तों को तीन वर्गों में विभाजित करने की योजना के अन्तर्गत वर्ग
'अ' में मद्रास, बम्बई, उत्तर प्रदेश, बिहार, संयुक्त प्रांत, वर्ग 'ब' में पंजाब,
उत्तर पश्चिमी सीमा प्रदेश और सिंध एवं वर्ग 'स' में बंगाल एवं असम शामिल होंगे। तीनों
वर्गों के प्रान्तों को अपने-अपने प्रतिनिधि चुनने एवं अपने प्रांत के लिए संविधान
बनाने का अधिकार होगा। संविधान निर्माण के लिए एक 'संविधान सभा' के गठन की बात की गयी।
संविधान सभा का चुनाव प्रान्तीय विधानसभाओं के सदस्यों से किया जाना था। इन सदस्यों
को तीन वर्गों, सामान्य, मुस्लिम और सिक्ख में बांटने की योजना थी। यह चुनाव आनुपातिक
प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया जाना था। शिष्टमण्डल ने पाकिस्तान संबंधी मांग
को स्वीकार नहीं किया। मुस्लिम लीग की मांग महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस
ने 'कैबिनेट मिशन योजना' को स्वीकार कर लिया, किंतु अन्तरिम सरकार की योजना का मुस्लिम
लीग ने विरोध कियां। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष
कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। 16 अगस्त, 1946 ई. को लीग ने सीधी कार्यवाही दिवस के रूप
में मनाने का निर्णय किया। परिणामस्वरूप साम्प्रादायिक दंगे हुए। नेआखली दंगे का केन्द्र
था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद- "16 अगस्त भारत के इतिहास में काला दिन है, क्योंकि
इस दिन सामूहिक हिंसा ने कलकत्ता की महानगरी को रक्तपात, हत्या और भय की बाढ़ में डुबो
दिया। सैकड़ों जानें गयीं, हज़ारों लोग घायल हुए और करोड़ों रुपये की सम्पत्ति नष्ट
हुई।" मिशन की असफलता मुस्लिम लीग ने ऊपर से तो इस योजना को स्वीकार कर लिया,
लेकिन यह स्वीकृति वास्तविक न होकर दिखावा मात्र थी। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम
लीग कौंसिल में भाषण देते हुए कहा- "मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि जब तक हम
अपने सारे क्षेत्र को मिलाकर पूर्ण और प्रभुसत्ता सम्पन्न पाकिस्तान की स्थापना नहीं
कर लेंगे, तब तक हम संतुष्ट होकर नहीं बैठेंगे।" लीग की इस विसंगति के कारण ही
गाँधी जी और कांग्रेस में उनके साथी, 'प्रांतों के वर्गबंधन' की योजना के विषय में
अशांत और आशंकित हो गए। लीग इस योजना को अनिवार्य करके इसे पाकिस्तान की स्थापना का
साधन बनाना चाहती थी। इस बात पर मतभेद से कैबिनेट मिशन-योजना विफल हो गई। 29 जून,
1946 ई. को कैबिनेट मिशन इंग्लैण्ड वापस चला गया।[1] विवाद की चरम सीमा तीन स्तरीय
संविधान योजना बड़ी सूक्ष्म व्यवस्था थी, जिसमें रोकथाम और संतुलन बनाए रखने के लिए
बहुत सारे उपाय किए गए थे। बड़े-बड़े दलों के बीच पूर्ण सहयोग के बिना संविधान बनाना
असंभव था, उसे कार्यरूप देना तो दूर की बात थी। कैबिनेट मिशन-योजना में समझौते का प्रयास
था, लेकिन यह कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एकमत नहीं कर सकी। इसका परिणाम यह हुआ कि
जिन मामलों को यह समझा जाता था कि इस योजना से वे तय हो चुके हैं, वे ही मिशन के तीनों
सदस्यों के इंग्लैण्ड लौटने पर तुरंत फिर उठाए गए। किन प्रांतों के 'वर्ग' बनाये जाएँ
और अंतरिम सरकार में किस दल के कितने लोग होंगे, इन दो महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर वाद-विवाद
की उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच गई। संविधान सभा के लिए चुनाव कैबिनेट मिशन के बारे
में गाँधी जी ने कहा कि "यह योजना उस समय की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में
सबसे उत्कृष्ट योजना थी, उसमें ऐसे बीज थे, जिससे दुःख की मारी भारत भूमि यातना से
मुक्त हो सकती थी।" जुलाई, 1946 ई. में कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत संविधान
सभा के लिए चुनाव हुआ। यह संविधान सभा प्रान्तीय विधानसभाओं द्वारा चुनी जानी थी, क्योंकि
यदि व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुनी जाती तो समय अधिक लगता। अतः संविधान सभा के
296 स्थानों के लिए चुनाव सम्पन्न हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने 214 सामान्य स्थानों
में से 201 स्थान प्राप्त कर लिये। साथ ही उसे चार सिक्ख सदस्यों का भी समर्थन प्राप्त
हुआ। दूसरी ओर मुस्लिम लीग को 78 मुस्लिम स्थानों में से 73 स्थान मिले। मुस्लिम लीग
की बौखलाहट मुस्लिम लीग यह सोचकर बौखला गयी कि 296 सदस्यीय संविधान सभा में उसकी केवल
24 प्रतिशत सीटें ही हैं। अतः उसने 29 जून, 1946 ई. को कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार
कर दिया। साथ ही लीग ने पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही की धमकी
भी दी। इस प्रकार लीग ने 16 अगस्त, 1946 ई. को 'प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' के रूप में
मनाया। इस दिन हुए ख़ूनी संघर्ष में बंगाल में लगभग 7,000 लोगों का कत्ल कर दिया गया।
साथ ही बिहार, बंगाल में नोआखली, सिलहट, बम्बई, गढ़मुक्तेश्वर (उत्तर प्रदेश) आदि स्थानों
पर भयानक साम्प्रदायिक दंगे हुए। एटली की घोषणा 2 सितम्बर, 1946 ई. को जवाहरलाल नेहरू
के नेतृत्व में 12 सदस्यीय अन्तरिम सरकार ने शपथ ग्रहण की। वेवेल के अनुरोध पर मुस्लिम
लीग के पाँच सदस्य अन्तरिम सरकार में शामिल हुए, किन्तु उनका रुख़ हठधर्मिता का रहा।
इसलिए किसी समझौते पर अन्तिम निर्णय नहीं हो सका। ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली
ने 20 फ़रवरी, 1947 ई. को दो महत्त्वपूर्ण घोषणाऐं कीं। प्रथम घोषणा में उसने कहा कि
ब्रिटिश सरकार जून, 1948 ई. से पूर्व भारतीयों को सत्ता सौंप देंगी। इस घोषणा के बाद
मुस्लिम लीग ने भारत के बंटवारे को लेकर आन्दोलन तेज कर दिया। उसे असम, पंजाब और पश्चिमी
सीमा प्रात में ख़ूनी संघर्ष करवाया। एटली ने दूसरी घोषणा यह की कि लॉर्ड माउंटबेटन
को वायसराय बनाकर भारत भेजा जाएगा।
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