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ख़िलाफ़त आन्दोलन Khilafat Movement

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  ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922 ई.) का सूत्रपात भारतीय मुस्लिमों के एक बहुसंख्यक वर्ग ने राष्ट्रीय स्तर पर किया था। गाँधी जी ने इस आन्दोलन को हिन्दू तथा मुस्लिम एकता के लिय उपयुक्त समझा और मुस्लिमों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की। महात्मा गाँधी ने 1919 ई. में 'अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति' का अधिवेशन अपनी अध्यक्षता में किया। उनके कहने पर ही असहयोग एवं स्वदेशी की नीति को अपनाया गया। आन्दोलन का सूत्रपात प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन एवं तुर्की के बीच होने वाली 'सीवर्स की संधि' से तुर्की के सुल्तान के समस्त अधिकार छिन गये और एक तरह से तुर्की राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। संसार भर के मुस्लिम तुर्की सुल्तान को अपना 'खलीफ़ा' (धर्म गुरु) मानते थे। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार पर तुर्की के साथ की जाने वाली संधियों में न्यायोचित व्यवहार सुनिश्चत करने के लिए पर्याप्त दबाव डालने के उद्देश्य से भारतीय मुस्लिमों के एक बहुसंख्यक वर्ग ने राष्ट्रीय स्तर पर जिस आंदोलन का सूत्रपात किया, वह 'ख़िलाफ़त आंदोलन' के नाम से जाना गया। ऐसे मौके को हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए उपयुक्त समझक...

महात्मा गाँधी और हरिजन उत्थान Mahatma Gandhi and Harijan uplift

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  गाँधी जी ने हरिजन उत्थान के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया। प्रसिद्ध 'पूना समझौते' के बाद गाँधी जी ने अपने आपको पूरी तरह से हरिजनों की सेवा में समर्पित कर दिया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने 1932 ई. में 'अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग' की स्थापना की। गाँधी जी का कथन अन्य शुद्धि के लिए उपवास के दौरान गाँधी जी ने कहा कि "या तो छुआछूत को जड़ से समाप्त करो या मुझे अपने बीच से हटा दो। यह मेरी अंतरात्मा की पुकार है, चेतना का निर्देश है।" जनवरी 1933 ई. में गाँधी जी ने 'हरिजन' नामक साप्ताहिक पत्र का भी प्रकाशन किया। उन्हें एम.सी. राजा जैसे हरिजनों का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने हरिजनों के लिए जगहों के आरक्षण के साथ एक ही निर्वाचक मण्डल की इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन अम्बेडकर के नेतृत्व ने इसी स्वीकार नहीं किया। अम्बेडकर ने ऐसी प्रणाली को मानने से इंकार कर दिया, जिनमें हरिजनों को हिन्दू तो कहा जाता था, किन्तु उन्हें अस्पृश्य माना जाता था। पूना समझौता मुख्य लेख : पूना समझौता अनशन के कारण गाँधी जी का स्वास्थ्य काफ़ी तेज़ी से गिरने लगा था। मदन मोहन मालवीय, डॉक्टर राज...

दांडी मार्च Dandi march

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 दांडी मार्च विवरण 'दांडी मार्च' महात्मा गाँधी के नेतृत्व में आयोजित की गई वह यात्रा थी, जिसके द्वारा गाँधी जी ने अंग्रेज़ों के कठोर नमक क़ानून को तोड़ा था। शुरुआत 12 मार्च, 1930 उद्देश्य अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए नमक क़ानून को तोड़ना। यात्रा की पूर्णता 6 अप्रैल, 1930 संबंधित लेख महात्मा गाँधी, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन, गाँधी युग, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, डाक टिकटो मे महात्मा गाँधी अन्य जानकारी यात्रा के दौरान गाँधी जी ने सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया। यहाँ से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। दांडी मार्च से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है, जो महात्मा गाँधी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था- "अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'।" गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दां...

युद्ध सन्धियाँ War Sndhiya

 भारतीय इतिहास में समय-समय पर कई युद्ध सन्धियाँ हुई हैं। इन सन्धियों के द्वारा भारत की राजनीति ने न जाने कितनी ही बार एक अलग ही दिशा प्राप्त की। भारतीय रियासतों में आपस में ही कई इतिहास प्रसिद्ध युद्ध लड़े गए। इन देशी रियासतों की आपसी फूट भी इस हद तक बढ़ चुकी थी, कि अंग्रेज़ों ने उसका पूरा लाभ उठाया। राजपूतों, मराठों और मुसलमानों में भी कई सन्धियाँ हुईं। भारत के इतिहास में अधिकांश सन्धियों का लक्ष्य सिर्फ़ एक ही था, दिल्ली सल्तनत पर हुकूमत। अंग्रेज़ों ने ही अपनी सूझबूझ और चालाकी व कूटनीति से दिल्ली की हुकूमत प्राप्त की थी, हालाँकि उन्हें भारत में अपने पाँव जमाने के लिए काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, फिर भी उन्होंने भारतीयों की आपसी फूट का लाभ उठाते हुए इसे एक लम्बे समय तक ग़ुलाम बनाये रखा। भारतीय इतिहास में हुई कुछ प्रमुख सन्धियों का विवरण इस प्रकार से है-  प्रमुख ऐतिहासिक सन्धियाँ  अलीनगर की सन्धि -  9 फ़रवरी, 1757 ई.  इलाहाबाद की सन्धि - 1765 ई.  मसुलीपट्टम की सन्धि - 23 फ़रवरी,  1768  बनारस की सन्धि प्रथम - 1773 ई.  बनारस क...

कैबिनेट मिशन Cabinet Mission

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 कैबिनेट मिशन क्लीमेंट एटली मंत्रिमण्डल द्वारा 1946 ई. में भारत भेजा गया था। इसका उद्देश्य भारतीय नेताओं से मिलकर उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना था कि सरकार संवैधानिक मामले पर शीघ्र ही समझौता करने को उत्सुक है। लेकिन ब्रिटिश सरकार और भारतीय राजनीतिक नेताओं के बीच निर्णायक चरण 24 मार्च, 1946 ई. में आया, जब मंत्रिमण्डल के तीन सदस्य लॉर्ड पेथिक लॉरेंस (भारत सचिव), सर स्टैफ़र्ड क्रिप्स (अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ़ ट्रेड) और ए.वी. अलेक्ज़ेण्डर (नौसेना मंत्री) भारत आए।[1] एटली की घोषणा ब्रिटेन में 26 जुलाई, 1945 ई. को क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में ब्रिटिश मंत्रिमण्डल ने सत्ता ग्रहण की। प्रधानमंत्री एटली ने 15 फ़रवरी, 1946 ई. को भारतीय संविधान सभा की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलन्त समस्याओं पर भारतीयों से विचार-विमर्श के लिए 'कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की। इस समय एटली ने कहा कि "ब्रिटिश सरकार भारत के पूर्ण स्वतन्त्रता के अधिकार को मान्यता प्रदान करती है तथा यह उसका अधिकार है कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत रहे या नही।" इसी घोषणा के दौरान एक वाद-विवाद में अपना विचार व्यक्त क...

बंगाल विभाजन Partition of Bengal

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 बंगाल विभाजन विवरण बंगाल अथवा 'अखण्डित बंगाल' उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। विभाजन सन् 1905 में भारत के ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा भारतीय राष्ट्रवादियों के भारी विरोध के बावजूद बंगाल का विभाजन (पश्चिम बंगाल और पूर्वी बंगाल) किया गया था। जिसमें पूर्वी बंगाल बाद में बांग्लादेश के रूप में स्वतन्त्र राष्ट्र बना। राष्ट्रीय शोक दिवस विभाजन के दिन 16 अक्टूबर, 1905 ई. को पूरे बंगाल में 'राष्ट्रीय शोक दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जाए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए। अन्य जानकारी विभाजन के सम्बन्ध में लॉर्ड कर्ज़न का तर्क था कि तत्कालीन बंगाल, जिसमें बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे, जो काफ़ी विस्तृत है और अकेला लेफ्टिनेंट गवर्नर उसका प्रशासन भ...

पूना समझौता

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पूना समझौता 24 सितम्बर, 1932 ई. को हुआ। यह समझौता राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की रोगशैया पर हुआ था। ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय के द्वारा न केवल मुसलमानों को, बल्कि दलित जाति के हिन्दुओं को सवर्ण हिन्दुओं से अलग करने के लिए भी पृथक प्रतिनिधित्व प्रदान कर दिया गया था। साम्प्रदायिक निर्णय के समय गाँधी जी यरवदा जेल में थे। इस निर्णय के ख़िलाफ़ 20 सितम्बर, 1932 को उन्होंने जेल में ही आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से पूना में गाँधी जी और बी.आर. अम्बेडकर के मध्य एक समझौता हुआ। अम्बेडकर ने समझौते के अन्तर्गत हरिजनों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को वापस ले लिया तथा संयुक्त निर्वाचन के सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया। इस समझौते के अन्तर्गत हरिजनों के लिए विधानमण्डलों में सुरक्षित स्थान को 71 से बढाकर 148 कर दिया गया। इसी समय रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाँधी जी के बारे में कहा था- "भारत की एकता और उसकी सामाजिक अखण्डता के लिए यह एक उत्कृष्ट बलिदान है। हमारे व्यथित ह्रदय आपकी महान तपस्या का आदर और प्रेम के साथ अनुसरण करेंगे।"